इलेक्टॉरल बॉन्ड या चुनावी बॉन्ड क्या हैं? भारत सरकार द्वारा 2017 में पेश किए गए चुनावी बॉन्ड ने व्यक्तियों और कॉर्पोरेट समूहों को गुमनाम रूप से किसी भी राजनीतिक दल को असीमित मात्रा में धन दान करने की अनुमति दी। इस की घोषणा तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने केंद्रीय बजट 2017-18 के दौरान की थी। इलेक्टोरल बॉन्ड भारत में राजनीतिक दलों के लिए फंडिंग का एक तरीका था
हालांकि 2017 की शुरुआत में पेश किया गया था, वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के विभाग ने 2 जनवरी 2018 को ही राजपत्र में चुनावी बांड योजना 2018 को अधिसूचित किया। एक अनुमान के अनुसार, मार्च 2018 से अप्रैल 2022 तक की अवधि के दौरान ₹9,857 करोड़ के मौद्रिक मूल्य के बराबर कुल 18,299 चुनावी बांड का सफलतापूर्वक लेन-देन किया गया चुनावी बॉन्ड इनकैश कराने वाली पार्टियों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस,YSR कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, TDP, डीएमके, JDS, एनसीपी,समाजवादी पार्टी, शिवसेना, AIADMK, बीआरएस, जेडीयू और राजद भी शामिल हैं।
2019 के आम चुनावों से पहले, कांग्रेस ने घोषणा की कि अगर पार्टी सत्ता में आती है तो वह चुनावी बॉन्ड को खत्म करने का इरादा रखती है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने भी इस योजना का विरोध किया है, और यह चुनावी बॉन्ड के माध्यम से दान से इनकार करने वाली एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी थी।
भारत के चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित आंकड़ों की जांच से पता चलता है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के कुल 485 दानदाताओं में से टॉप 10 ने 2119 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे हैं जो कि पार्टी द्वारा अप्रैल 2019 के बाद से भुनाए गए 6060 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड का 35% है। यह आंकड़ा सभी दलों में सबसे ज्यादा है
भारत में चुनावी बांड क्यों पेश किए गए?
चुनावी बॉन्ड का प्रस्ताव अरुण जेटली द्वारा शुरू किया गया था इसका मतलब यह था कि जो अवैध धन है उसे उजागर करना और राजनीतिक फंडिंग में प्रदर्शिता और जवाब देही में सुधार के उपाय के रूप में चुनावी बॉन्ड पेश किया गया ।
चुनावी बॉन्ड की शुरुआत से पहले राजनीतिक दलों को अक्सर अज्ञात स्रोतों से नकद में दान मिलता था। पारदर्शिता की इस कमी के कारण धन के स्रोत का पता लगाना मुश्किल हो गया था । इलेक्ट्रोलर बॉन्ड व्यक्ति और संगठन को राजनीतिक दलों को दान देने का एक सुधाजनक और सिद्ध तारिका प्रदान करता है । दान करता, जनता राजनीतिक दल को अपनी पहचान बनाए बिना आधार बैंक से लाभ उठा सकता है ।इस प्रकार की एक परत प्रदान की जाती है । और अधिक लोगों को योगदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है ।
इलेक्ट्रोल बॉन्ड तेज करने का प्रथम उद्देश्यों में से एक राजनीतिक दलों की फंडिंग में अधिक पारदर्शिता लाना था। और चुनावी राजनीति चंदा नागाद में दिया जाता था। जिसमें धन का स्रोत पता लगाना कितना पैसा किस पार्टी को मिला यह सारी जानकारी नहीं रखता था । और काले धन का इस्तमाल किया जाता था । काले धन के पर्व को रोकने के लिए चुनावी बॉन्ड शुरू किया गया । चुनावी बांड का उदेश्य राजनीति चंदे के लिए एक स्वच्छ और अधिक पारदर्शी तंत्र प्रदान करना है ।
लोग चुनावी बांड क्यों खरीदते हैं?
चुनावी बॉन्ड भारत में 2018 में शुरू किया गया एक वित्तीय साधन है। चुनावी बॉन्ड हम इसलिए खरीदते हैं। कि जिस पार्टी के प्रति हमारा लगाव हो जो पार्टी देश के हित में काम करे उन्हें हम यह राशि मदद के रूप में देते हैं।
जिसका उद्देश्य व्यक्तियों और कॉर्पोरेट संस्थानों को प्रदर्शित तारिके से राजनीति दलों को दान देना है। चुनावी बांड की एक मुख्य विशेष यह भी है। कि वाह दान दिए गए राशि को बहुत हद तक गुमनामी प्रदान करते हैं। इसका जानकारी किसी को भी नहीं दिया जाता है। की किसने किस पार्टी को कितने पैसे दान दिए हैं।
चुनावी बॉन्ड खरीदने के लिए भारतीय स्टेट बैंक (SBI) इन बॉन्ड को जारी करता है। यहां तक की दान करता की पहचान जनता या राजनीतिक दलों को बताई नहीं जाती है। चुनावी बॉन्ड राजनितिक दान एक कानूनी मार्ग प्रदान करने के लिए किया जाता है। चुनावी बॉन्ड को भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के निर्देश डिजिटल या भौतिक रूप से खरीद जा सकता है। और किसी भी राजनीतिक दल को यह दान देने में इस्तेमामल किया जा सकता है। जिसे किसी भी वंचित राशि का योगदान करना आसान हो जाता है। बॉन्ड की वैधता अवधि कम होती है। सार्वजनिक नीति किसी विशेष राजनीतिक विचार धारा के प्रति निष्ठा दिखाने का एक तरीका भी हो सकता है।